Chandragat bharti

Tragedy Classics

4.6  

Chandragat bharti

Tragedy Classics

कोई भी खुशहाल नहीं

कोई भी खुशहाल नहीं

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आभावों से ग्रस्त जिन्दगी 

रोटी है तो दाल नहीं 

गाँव मेरा खुशहाल गंज पर 

कोई भी खुशहाल नहीं।


रोज कमा कर खाने वाले 

कैसे पालें पेट यहाँ

नेता आते हैं बस करने

वोटों का आखेट यहाँ

पीर भला वो जानें कैसे

जिनके सर जंजाल नहीं।


सभी गरीबी की रेखा से 

नीचे करते गुजर बसर 

संतराम के घर अंधियारा 

किन्तु किसी पर नहीं असर

चीनी चावल कैरोसिन तक 

मिलता सालों साल नहीं।


अंधा गूंगा बहरा शासन 

कब देता आवास इन्हें 

अक्सर मिलता लाभ उन्हें ही 

मुखिया के हों खास जिन्हे 

चाहे जियें मरें या मंगरू 

कोई पुरसाहाल नहीं।


गलियों के हैं धंसे खड़न्जे 

कागज में शौचालय है 

बिजली पानी भले नहीं पर 

आज वहाँ मदिरालय है 

लड़े आज सत्ता से जाकर 

ऐसा कोई लाल नहीं।


झूठ मूठ गारंटी देती 

मनरेगा मजदूरी की 

कौन देखता दशा भला पर 

जोखन के मजबूरी की 

नेता अफसर का आपस मे 

कोई भी सुरताल नहीं।


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