कंपन सी जिंदगी
कंपन सी जिंदगी
नजरों का धोखा है या सपना सा
क्या नाम दूँ जो ना लगे अपना सा?
आसमां के बदलते इस रंग की
जल में फेंकें पत्थरों के तरंग की।
पल पल में कोई खौफ सा समाया है
कैसा वक्त है जो तूफां ले कर आया है?
महामारी से जिन्दगी के इस जंग की
जल में फेंकें पत्थरों के तरंग की।
धरती लाल सी हुई, आँखें नम सी हुई
मुस्कराहट में छिपी सूरतें गम सी हुई
साथ ये कैसा अकेलेपन के संग की
जल में फेंकें पत्थरों के तरंग की।
फिर से वही पुराने दिन कोई लौटा दे
छम छम बूंदें और खुशियों की छटा दे
सिमट जाये काली चादर ये मतंग की
जल में फेंकें पत्थरों के तरंग की।