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कमल तेरी फ़िजूल कलम से

कमल तेरी फ़िजूल कलम से

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भैया को उदास जो देखा,

तो भैया से बोली बहना है

आज क्यूँ मुँह चढाया है

क्यों भैया आज कुछ कहना है ।


भाई फिर भी कुछ न बोला,

तो बहना जरा करीब आई

ऐसा क्या हो गया जो चुप है

मेरा हरदम मुस्कुराता मेरा भाई ।


बहन ने प्यार से उसका सिर उठाया,

बोली मुझे बताते हो या नही,

वरना कुट्टा करके बैठ जाऊंगी

फिर तुमसे कभी बतयाऊंगी नही ।


भाई बोला ना ना ऐसा न करना,

मैं किसको फिर बताऊँगा

कभी दुख होगा मुझको कोई तो

किसको दुखड़ा सुनाऊंगा ।


बात ही कुछ ऐसी है बहन,

कि मन व्याकुल और क्रन्दन है

मैं क्या तुझे कल भेंट करूँ

कल तो रक्षा बन्धन हैं ।


बस सुनना था बहन का,

सुनते ही वो तनिक मुस्कुराई

इतनी सी बात के लिऐ

गुमसुम बैठा है मेरा भाई ।


न मुझे नही चाहिऐ कुछ नही,

मुझे चाहिऐ मेरे भाई का दुलार

जिसके सामने कुछ मोल नही

चाहे हो कीमती कितना भी उपहार ।


भाई बोला बस इसलिऐ गम था,

कि प्यार की डोर न जाऐ टूट

प्यारी बहन को कुछ न दूँ

तो कहीं जाऐ न मुझसे रूठ ।


फिर बहन बोली छोड़ो भाई

कल तो रक्षा बन्धन है

आओ कल दिन हमारा है

और बेवजह यह रूदन है ।।


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