कम चीज़ों में चलाने का आदी हूँ
कम चीज़ों में चलाने का आदी हूँ
फ़ना होकर हर रिश्ते को मैंने सिंचा है,
क्या कहे हाल ही में हमने घर बेचा है।
खड़े रहे सबके साथ व्यवहार निभाते,
फ़कीर हो जाएँगे ये कभी न सोचा है।
जेब को जल्दी रहती है खाली होने की,
रिश्वत लेना सीखा नहीं यही तो लोचा है।
उधार हराम है जुगाड़ में ही उम्र बीती,
ज़िंदगी की बेरहमी ने पग-पग नोचा है।
होते होंगे साहब कोई लकीरों के धनी,
यहाँ तो किस्मत का ठीकरा ही फूटा है।
सिरा जोड़ने की जद्दोजहद जानलेवा सी,
आदमी आम को ऐश कहाँ शोभा देता है।
आदी हूँ कम चीज़ों में चलाने का यारों,
गरीबी से किया हमने भी एक सौदा है।
खरीद लेता हूँ कभी टिकट लौटरी की,
पैसों की बारिश का सपना भी देखा है।
छोड़िए रुबरु न मिले महा लक्ष्मी न सही,
आस का दामन अभी बंदे ने नहीं छोड़ा है।