कितना मनभावन लगता है
कितना मनभावन लगता है


कितना मनभावन लगता है.......
सुहानी भोर को
शबनम का फूलों के
गालों पर फिसलना
चुपके से मस्त बयार का
कलियों के होंठों को चूम
इठला कर चले जाना
कितना मनभावन लगता है.....
इंद्रधनुषी शाम को
आसमां पर उड़ते बादलों को
बेवजह ताकना
पेड़ों की चिलमन से
झांकती सांध्य सुंदरी का
प्रियतम को देख
सुर्ख हो जाना
कितना मनभावन लगता है.......
खोयी-खोयी सी
चाँदनी रात में
एकटक तारों को निहारना
और थाम
स्मृति का आँचल
तेरी यादों में खो जाना
कितना मनभावन लगता है....