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Sushmita chander

Drama Inspirational

5.0  

Sushmita chander

Drama Inspirational

कितना कोलाहल है बस शोर ही शोर

कितना कोलाहल है बस शोर ही शोर

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कितना कोलाहल है,

बस शोर ही शोर है,

मशीनी सी जिंदगी है,

मशीन-सा इंसान।


शांत से लम्हे खो से गए है,

हँसी ढूँढे नहीं मिलती,

होंठ हिलते तो है,

एक नकली से नकाब में,

झूठ का लबादा ओढ़े हुए,

पर थिरकते से नहीं।


इन्सान न खुशी से जागता है,

न सुकून से सोता है,

जिंदगी और मौत के बीच के,

पहर को बस यूँ ही गुजारता जा रहा है,

फटते दिमाग टूटते दिल,

तनी नसों बोझिल से पलों का मालिक,

इंसान बनता जा रहा है।


न आस है न विश्वास,

फिर किस तरफ बढ़ा जा रहा है,

सदके में सर भी झुकाता है,

मीलों का फांसला तय करता जाता है,

पाता है क्या खोता है क्या,

के खाते में झांके तो क्या,

खोया का ही हिसाब बना पाता है।


बहुत हो गया अब जीना सीखना होगा,

साँस तो सब लेते है,

जिन्दा साँसों के एहसास को जीना होगा,

आज सच है आज खूबसूरत है,

तो आज को जीना होगा न।


सूरज को देख कर,

सूरजमुखी को जागना होगा,

दूर क्षितिज से झाँकती खिड़की से,

खुशी को धरा पर उतर कर आना होगा,

विश्वास से कहो की मुझे जीना है,

तो जिंदगी को तुम्हारी शर्तों को मानना होगा।


जाग जाओ की भोर होने को है,

एक नया सूर्य उदय होने वाला है,

नए सूरज की नई किरणे,

धरा पर उतर कर आ रही है,

अपने हाथों में इन्हे समेट लो,

दुखती बंद मुठियों के मालिक,

जिन्दा खुली हथेलियों में जिंदगी को हँसने दो।


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