STORYMIRROR

Sushmita chander

Others

5.0  

Sushmita chander

Others

अचानक कुछ अजनबी से तुम

अचानक कुछ अजनबी से तुम

1 min
627



रात के साये फिर गहराने लगे हैं

नींद है की सिसकिओं की लड़ी सी सुबकती जा रही है

रौशनी चाँद भी बेरौनक सा लगता है मुझे

करवटे हैं की खुद ही बदलती जा रहीं हैं


कहते थे परछाई हो मेरी

भरी धुप मैं फिर क्यों मिटती जा रही हैं

सिमटे से बैठे हैं हम आज अपने लिहाफ में

हाथ बढ़ाये भी तो क्या छूने के लिये

अजनबियत का एहसास जलाता बहुत है


तुम्हारी दोस्ती सच थी

या अब यूं अजनबी हो जाना

पहले दोस्ती मे लुटे अब अजनबियत में

अचानक कुछ अजनबी से तुम


Rate this content
Log in