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Sushmita chander

Inspirational Others

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Sushmita chander

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मैं तिरंगा कहता हूँ तुमसे

मैं तिरंगा कहता हूँ तुमसे

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मैं तिरंगा कहता हूँ तुमसे,

वर्षों की धूल से सने हैं मेरे कदम,

मेरी आँखों में बसे हैं,

असंख्य पल, असंख्य मंजर।


मंजर जो मैने देखे थे,

मंजर बहुत हसीन थे,

माटी की सोंधी खुशबू में,

जलते आजादी के दिए थे।


गंगा के लहरों सी पवित्र,

जिंदगी हसीं थी,

गिरने से पहले थाम ले जो आंसू,

ऐसी हथेलिया अनेक थीं।


क्या समां था, क्या था जनून,

जिंदगी की डोर को छोड़,

मौत के पहलू में मेरे,

शहीदों ने पाया था सकून।


मंजर जो मैने देखा था,

मंजर बहुत हसीं था,

कल होगा,

जागती लाशों का तांडव,

ऐसा तो मैने सोचा न था।


आजादी मिली में फूला न समाया था,

हर दिशा मे मैं उन्मुक्त लहराया था।


उठा कदम हम बढ़ चले,

पर आज मुझे डर लगता है,

टूटे सपनों के किरचिओ पर चलते,

दिल हौले हौले थमता है।.


भटके हैं रहनुमा,

गुमराह भीड़ है,

दिलों मे हैं रंजिशे,

डूबती तकदीर है।


खुदगर्ज़ी की बेड़िओं में,

जकड़े तुम गुलाम,

तुम हो कहाँ आजाद ?


सुनो अब जो में कहता हूँ,

उसे पल्लू से ,बांध लो,

भूल कर सब,

बस मेरा हाथ थाम लो।


शहीदों के लहू ने, सींचा है मुझे,

धर्मों से ऊपर, धर्म के मूल्यों ने पाला है मुझे।


मुझमे अतीत है समाया,

मुझमे भविष्य पाओगे,

में भारत की रूह का मूल मंतर,

कर्म भी मैं, धर्म भी मैं, मैं मोक्ष हूँ।


रहनुमाओं चल पड़े थे,

जब रहनुमाई की डगर पर,

क्यों लालची भूख के, चक्रविहु मे बिंध गए,।


रौशनी का वादा जब किया था,

क्यों खुद ही अँधेरी गर्त में धंस गए।


भीग जाओ मेरे केसरी में, अपनी रगों में

साहस को जन्म लेने दो,

स्वार्थी बंधनो से हो मुक्त,

सुनो अपनी आत्मा की पुकार।


मेरा केसरी ही है तुम्हारी जिंदगी का सार,

सहेज लो पवित्रता को, सोचों की हथेली में,

ढूंढ लो जो मकसद छिपा है,

मेरे केसरी की पहेली में।


मेरा श्वेत कहता है तुमसे,

भूल जाओ रंजिशे,

उतार फेंकों दिलों को जकड़ती,

कंटीली तारों के जाल।


दिल को धड़कने दो बस,

सुन सुन कर शांति की ताल,

एक हो, एक समझो,

सच का दामन थाम लो,

उत्थान के लिए श्वेत के मंत्र को धार लो।


चक्र कहता है, थमो नहीं थको नहीं,

उन्नति की राह पर बस चले चलो,

न्याय की नींवों पर बसे समाज में,

न्याय तुम करे चलो।


हरा विश्वास है,

हरा यश और प्रताप है,

हरा मुझे मेरी मिटटी का वास्ता,

मेरा मेरी धरा के लिए प्यार है।


हरा कहता है तुझसे,

अभी धरा की देनो का भुगतान शेष है,

कर्मवीर का रूप ही,

तेरा सच्चा भेष है।


में तिरंगा कहता हूँ तुमसे,

सुन लो मेरी पुकार,

रंग जाओ मेरे रंगों में,

कल की सुबह में फिर,

दर्द और चुभन न होगी।


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