किसलिए ?
किसलिए ?
क्या रखा है इस जमाने में,
जो लगे हैं सब कमाने में।
चंद पलों की गिरवी सांसें हैं,
वक्त नहीं लगेगा खाक हो जाने में।
कौन किसी का सगा है यहाँ पर,
सब अपने में उलझे हैं जहाँ पर।
किसी के होने के भी मायने हैं,
वरना क्याें रहता है आदमी वहाँ पर।
कोई तो हँसता है खुलकर,
और कोई रोता भी है छिपकर।
पता नहीं किसके लिए जी रहा,
जाएगा तो सब कुछ यहीं छोड़कर।
अजब जिन्दगी की जिन्दगानी है,
कभी सफ़र है सैर सुहानी है।
कभी बिखर जाती है हर कड़ी,
कब पन्ना पलटे ग़म की कहानी है।
ये आपा धापी ये भागा दौड़ी,
कब चला जाए कोई साथ छोड़ी।
एक पल का भरोसा नही है,
और लगे हैं यहाँ सब जोड़ा-जोड़ी।
कह देना कि मेरी बात को गलत,
आदमी की पूरी जिन्दगी मुसीबत।
मगर हूँ सही मैं ये बात लिख लो,
धोखेबाज़ है सब दगाबाज़ किस्मत।