किसान
किसान
दिन उगता है बाद में
वो उठ पहले जाता है
खुद वो भूखा रहकर के
हम सबके लिए अन्न उगाता है
जाति -धर्म, भाषा, क्षेत्रवाद की सीमाओं को
वो अपने श्रम से ठुकराता है
चिड़ियों की बोली से पहले
वो खेतों में हल चलाता है
कैसा अभागा है बेचारा
लोन ले लेकर के अपना काम चलाता है
जब इस निर्धन का धन लुट जाये तो
यह फांसी पर झूल जाता है
देश का पालन करने वाला यह किसान
खुद ही न पल पाता है
बैंक ने इसका ऋण भी तो
इसके ऊपर थोप दिया
जो बड़े व्यापारी थे बस
उनका ही ऋण मुआफ़ किया
कुछ ऐसे भी थे उनमें
जो देश से भाग दूर गये
बस यह ही चंद मज़बूर थे
जो श्रम की मस्ती में चूर रहे
आज फिर देखो कैसे दुर्दिन है इसके
पुलिस की लाठियाँ खाता है
अपनी सच्ची आन को बचाने में
यह मिट जाता है
इसके खिलाफ दोष बहुत है
फिर भी यह निर्दोष बहुत है
कोई इसकी अहमियत समझो
कोई तो इसकी हक़ीक़त जानो
अब भी वक़्त जाग जाओ
वरना भूखों मर जाओगे.......
इसका दिल दुखेगा तो.....
तुम ईश्वर का दिल दुखाओगे......
