किसान की मौत ?
किसान की मौत ?
सुना है संसद में,
दही से सस्ती,
लस्सी बिकती है !
इधर आकर देखो साहब,
यहाँ कफ़न से सस्ती,
रस्सी बिकती है !
हर किसान पूछता,
है अपने आप से ,
कि मेरी पैदा की हुई फसल,
न जाने किधर बिकती है !
ले जाता हैं साहूकार,
सस्ते दामों में,
सुना है बाजार में,
बड़ी जबरदस्त बिकती है !
ये रेगिस्तान में,
मरीचिकी के जैसी है,
बिकते हुए भी,
नहीं दिखती है !
और अब नहीं उगाना,
मिट्टी से सोना,
हमारी ज़िंदगी भी मिट्टी की,
मिट्टी में मिलती है !