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Rajendra Jat

Tragedy Inspirational

4.5  

Rajendra Jat

Tragedy Inspirational

किसान हूं मैं

किसान हूं मैं

1 min
301


फटे कपड़े, आसमान से ढका बदन,

धरती की धूल ही है मेरे पैरों की मेहंदी,

ठंड में ठिठुरता मेरा बचपन,धूप मे जलता यौवन 

बुढापा और... डराता है, डराती है "बेटी" की मेहंदी।

मजबूर हूं मैं,

किसान हूं मैं।


खेतों में लहलहाती मेरी मेहनत

घर आएगी!!! या यों "खड़ी" रह जाएगी

बाजार में बोली लगने को है......

बाजार में "बेचने को मजबूर" अपनी मेहनत

लाचार हूं मैं

किसान हूं मैं।


वैसे तो अन्नदाता हूं , सबकी नजरों में

फिर खुद से नजर नहीं मिलाता

जब अन्नदाता होकर अन्न को तरस जाता हूं

भूख प्यास भूलकर पेट बांधकर सो जाता हूं

सोचता हूं "सवेरा" नया होगा कभी तो पेट मेरा भी भरा होगा

बदहाल हूं मैं

किसान हूं मै।


गिद्ध सी आंखें गड़ाए बैठे हैं

बरसों से "मेरी मां" पर बुरी नजर लगाए बैठे हैं

मैं भी भूल चुका हूं सर्दी, गर्मी और बरसात

"हल" थाम कर बैठा हूं अपने खेतों में

दुश्मनों से करने दो दो हाथ

स्वाभिमानी हूं मैं 

किसान हूं मैं।


चापलूस नहीं, ना ही अंधभक्त हूं

मत भूलो

मेरे ही "लाल" हैं जो आज सीमाओं पर खड़े हैं

मेरे ही "लाल" हैं जो आज दुश्मनों से लड़े हैं

मां भारती की रक्षा के लिए "बेटे न्योछावर" करता हूं मैं

जब बात "मेरी मां की रक्षा" की आए, 

हंसते हंसते "शीश अपना" अर्पण करता हूं मैं

देशभक्त हूं मैं

किसान हूं मैं।



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