ख्वाबों में दुलहन
ख्वाबों में दुलहन
इन्ही जुल्फों मे घर अपना
बना लूं गर इजाजत हो
तुम्हे ख्वाबों में दुलहन मैं
बना लूं गर इजाजत हो।
रहा इक बोझ सा मन में
कभी भी कह न पाया मैं
कभी मैंं काँच साथ बिखरा
कभी बदली सा छाया मैं
ये दिल की धड़कने अब तो
गिना लूं गर इजाजत हो।
मिलन जो था कभी अपना
वही अहसास लाने दो
बहारें रूठ ने जायें
इन्हे तुम पास आने दो
लबों से गीत मैं लब को
सुना लूं गर इजाजत हो।
विरह की आग मे कब से
सुलगता जिस्म सारा है
स्वयं को चन्द्रगत छलता
जमाने का ये मारा है
सुहानी शाम रूठी है
मना लूं गर इजाजत हो।