कभी मुमकिन हो तो..
कभी मुमकिन हो तो..
कभी मुमकिन हो तो आना
तन्हाइयों में।
मिलेंगे, बैठेंगे, बात करेंगे,
बिना मिले ही मुलाकात करेंगे।
कभी मुमकिन हो तो आना
तन्हाइयों में।
क्या है कि फुर्सत के पल बहुत
होते हैं,तन्हाइयों में।
और बहुत कुछ मिल जाता है,
उन अनकही रुबाइयों में।
इन्हीं रुबाइयों को,
फिर से समझने की नई
शुरुआत करेंगे!
कभी मुमकिन हो तो आना
तन्हाइयों में!
मिलेंगे, बैठेंगे, बात करेंगे।
होता है,
कभी-कभी हम दौर को पहचान
नहीं पाते है।
अपने ही रौ में बहते हुए निकल
जाते है।
और बंट जाते है दो किनारों में!
इसलिए कहता हूं कि तुम आना
तन्हाई में,
इन दोनों किनारों को फिर से
एक साथ करेंगे।
कभी मुमकिन हो तो आना
तन्हाइयों में।
मिलेंगे, बैठेंगे बात करेंगे!
इस बार समझेंगे एक दूसरे को,
तुम गिला मिटाकर आना,
मैं हर शिकायत भुलाकर आऊंगा!
तुम सहला देना मेरे दर्द को
कि आराम मिल जाए ,
और मैं तुम्हारे घाव पर मरहम
लगाऊंगा!
पर इसके लिए जरूरी है कि
दोनों के पास वक़्त हो,
तभी तो एक अपने जज़्बात करेंगे
कभी मुमकिन हो तो आना
तन्हाइयों में।
मिलेंगे, बैठेंगे, बात करेंगे!