अपनी तकदीर से
अपनी तकदीर से
आज से नहीं, पुरानी रंजिश चली आ रही है, अपनी तकदीर से !
कभी पलटी नहीं, हमें हमेशा बांध के रखती है जंजीर से।
पर! बिना कठपुतली बने हम लड़तें है,
जीत जीत के हारते है और आगे बढ़ते है,
फिर एक बड़ी फिसलन आती है, शिखर से कुछ कदम पहले,
लुढ़क जाते है, चोट खाते है,
और घायल हो जाते है, कमर में बंधी, अपनी ही शमसीर से !
आज से नहीं, पुरानी रंजिश चली आ रही है, अपनी तकदीर से !