अधूरी सी चाहत
अधूरी सी चाहत
1 min
325
कहना क्या है नहीं समझता वह,
कई बातों में छुपाकर इशारा तो करता हूं !
माना की नही मिलती निगाहें,
धड़कनों के सहारे पुकारा तो करता हूं !
ठहरो जरा दोष तकदीरों को दे दूं,
जब बन सकते थे मेरे तब मांगा नहीं,
अब मिलोगे नही यही क़िस्मत मेरी है,
फिर भी दूआओं में मांगा तो करता हूं !
कभी नींद उड़ती तो तुम्हीं सुलाते,
तुम्हीं तकलीफों में दिलासा बनके आते,
पर कहां पूरी करता रब नाजायज सी चाहें,
फिर भी, अधूरी सी चाहत को चाहा तो करता हूं !