Raju Kumar Shah

Abstract

4.5  

Raju Kumar Shah

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पहाड़! पसंद नहीं आते!

पहाड़! पसंद नहीं आते!

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ऊंचे रहकर गिरने का अहसास दिलाते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!

झुक झुक कर एक एक कदम चढ़ना,

पर आख़िर में, शिखर से फिसल जाते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!


हरी भरी वादियों में, खुशगवार मौसम,

और! कलेजे में, पत्थर ही पत्थर पाते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!


बहुत बड़ी साख से जुड़े, गगन की तरह खिले,

बादलों से मिलकर, आंसुओं से भिंगाते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!


सख्त बेहिसाब! झीलों के दिल में भी डूबकर!

भावनाओं के परे रहते, न प्यार को समझ पाते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!


कई मकान देखे, इनकी तलहटी में टूटे हुए!

जो इनके हमराह हैं! वे मिट्टी में मिल जाते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!

इसलिए पहाड़! अब पसंद नहीं आते!


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