ख्वाबो का अस्तित्व
ख्वाबो का अस्तित्व
आंखों में पले कुछ ख्वाबों को,
ढूंढ रही थी मैं
रंग बिरंगे सपनों को,
जो टूट गए थे,
ढूंढ रही थी मैं...
कोशिश कर रही थी,
उतारने की कैनवस में उन्हें,
सीचें थे जो मैंने, अपनी यादों से,
चुराना चाहती थी,
हाथों की लकीरों से,
अपने ख्वाबों के साथी को,
आज फिर उसे,
ढूंढ रही थी मैं...
आज फिर मेरे मन के भावों में,
उन्मुक्त सागर की लहरों की तरह,
मचल रहे हैं मेरे ख्वाब,
टकराकर साहिल से,
आवेशित लहरों की तरह,
मेरे मन से विद्रोह करके,
फिर एक बार बह उठे,
उन्हीं को आज फिर एक बार,
ढूंढ रही थी मैं....
आंखों से जल की धारा बनकर,
बहते हुए ख्वाबों का,
अपना अस्तित्व ,
ढूंढ रही थी मैं....!!

