प्यार खिलेगा हमारा
प्यार खिलेगा हमारा
मेरे बिन मेहताबी रातों को,
तु करती रोशन आज भी
बन कर कोई क़ुतुब तारा
ये खुशफेहमी पाली है तुने
तो तेरी मर्ज़ी सनम, पर
ज़िंदा है अभी प्यार हमारा
ज़रा से ये फासले जहां के
मोहब्बत को कैसे ज़िबां करें
कैसे मुझ धड़कन को आखिर
दिल से तेरे जुदा करे ?
शायद इंसां ही थे जब इश्क़ किया था
तुम्हें भी तो इंसां से ही प्यार था
खता होती है इंसां से मुख्तसर
पता तुम्हें भी यार था ?
इस खतागार का बन सकती थी
कोई रेहमती गफ्फार तुम
अना से रूठना आसान है बहुत
कर सकती थी बेशुमार प्यार तुम
वो प्यार जो ख़ज़ान की नायाब पारिजात हैं
वो प्यार जो है ओस किसी बेसब्र सेहर की
वो प्यार जो कल्ब ए जुनूब की कोई बात हैं
वो प्यार जो कहीं ठहराव है दोपहर की
हाँ वोही प्यार, कि जिसमें तुम और हम खिलते थे
बहाना जिसे बनाकर, हम चोरी चोरी मिलते थे
शायद वोही प्यार, जिसका प्यासा मैं आज भी हूं
शायद कहीं मैं पेहले जैसा आज भी हूं
बस नज़र तुम्हारी, ज़रा बदल सी गई हैं
वो इश्क़ में सराबोर शाम, ढल सी गई हैं
पर फिक्र नहीं, फिक्र नहीं इस बात की
फिक्र नहीं बिन मेहताबी काली रात की
कहा था ना
तेरा इश्क़ बनकर जल रहा है जैसे कोई कुतुब तारा
ये रात ढलेगी, सहर होगी ज़रूर, खिलेगा, प्यार हमारा।