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Kalyan Mukherjee (ज़लज़ला)

Abstract

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Kalyan Mukherjee (ज़लज़ला)

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नफरत करना नहीं आता है

नफरत करना नहीं आता है

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इस दिल में ज़रा सी नफरत की गुंजाइश है

कर सकूँ ज़रा सी नफरत तुझसे

बस अब इतनी सी दिल की ख्वाहिश है

पर देखो ये दिल मेरा बदस्तूर समझाता है


"ज़लज़ला तुझे नफरत करना नहीं आता है"

"समेटलें ये टूटे दिल के टुकड़े, इन्हें जोड़ दे

इरादा जो पनप रहा है नफरत का आजकल

आज कर हिम्मत, वो तोड़दे


ये दुनिया बुरी सही, यहाँ नफासतों का अंबार है

पर सच तो ये है, जीतता हमेंशा कहीं प्यार है

तुझे भी तभी तेरा ज़हन ये बुझाता हैं

ऐ ज़लज़ला तुझे नफरत करना नहीं आता है


ये जो सारे नारे है, ज़हर जो घौलते कान में

बिक रही नफरत जहाँ सस्ती हर दुकान में

कहीं प्यार का ठेला भी इस मोहल्ले में है

जो इत्र सा सम्त महकाता है, बहलाता है


वो उम्मीद भी नया ले आता है

दिल में छिपे इस रंजिश को मैं आज भुला दूं

इंधन जो है नफरत की, आज उसे जला दूं

चाहूं या करूं तमन्ना कोई, मेरे लिए बेकार है

हूं प्यार का कोई पुजारी, नफरत से इंकार है


हर एक ज़र्रा इस जिस्म ओ रूह का ये कहता है

ऐ "ज़लज़ला" तुझे नफरत करना नहीं आता है।


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