तुम्हें कुछ नहीं होता
तुम्हें कुछ नहीं होता
हमारा दिल जब हिज्र में तेरे पल पल है रोता
ताज्जुब है!!! जानेजाना तुम्हें कुछ नहीं होता
आहटों के तुम्हारे आदी हमारे कान है
तुम आती हो तो कहीं आती दिल में जान है
ज़िन्दगी, क्या है ज़िन्दगी, बिन तुम्हारे,
कोई उनवान है
जिसमें वक़्त मयस्सर हैं सही, पर हर तरह
बेजान है
इस कदर जब दिल ये मेरा इश्क़ में तेरे खोता
ताज्जुब है!!!! जानेजाना तुम्हें कुछ नहीं होता
हमारे होज़ को आज भी कहीं परवान की
तलाश है
तार ए ज़ेस्त पर छेड़ती तेरे लम्स का इंतयाश है
रखते मेहफूज़ जा राज़ को, तेरे रुबरु फाश है
पर जो हो कमी तेरे दीद की, होता दिल में
खराश है
लम्हा लम्हा आशिक़ तुम्हारा हर लम्हे को है
पिरोता
ताज्जुब है!!!! जानेजाना तुम्हें कुछ नहीं होता
फर्क पड़ता है मेरे सोच को बहुत जब होती
तू पास है
खिल जाते है दिल में पैवस्त जो कोरे एहसास है
तेरी सोहबत मकसूस है, हम आशिक़ भी तो
खास है
अरसो बिछड़ कर भी मुझमें क्यों वो पहली
जैसी प्यास है
ज़माने बाद भी तो खाकसार ये, तेरे नूर से
खाक होता
ताज्जुब है!!!! जानेजाना तुम्हें कुछ नहीं होता
मिले हो दिन बाद इतने, उम्र के इस दहलीज़
पर
फिर भी जैसे दिल ये नए ख़्वाब है संजोता
ताज्जुब है!!!! जानेजाना तुम्हें कुछ नहीं होता