ग़ज़ल की तरह
ग़ज़ल की तरह
लबों पर आकर रुकी है
वो ग़ज़ल की तरह
खड़ी है आंखों के सामने हरदम
वो चश्में की तरह
पकड़ रखी है उंगली मेरी
उसने अंगूठी की तरह
चूमा उसने मेरे माथे पर
तिलक की तरह
बसी है वो मेरे दिल में
धड़कन की तरह
छिप सी गई वो मेरे अंदर
कहानी की तरह
छोड़ गई वो मुझे एकरोज
पहेली की तरह
बिखरी है आज वो हर जगह
बस अब राख की तरह।