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Anonymous Writer

Abstract

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Anonymous Writer

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ज़रूरी तो नहीं

ज़रूरी तो नहीं

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बंद आंखों में नींद हो, ये ज़रूरी तो नहीं

मुस्कान के पीछे खुशी हो, ये ज़रूरी तो नहीं


दिल तुम्हारा कांच सा हो, और

कोई पत्थर ना मारे, ये ज़रूरी तो नहीं


सलाखों के पीछे कई जिंदगियां है

हर कोई गुनहगार हो, ये ज़रूरी तो नहीं


खबर पूछने तो कई लोग आ जाते हैं

इरादे सब के पाक हो, ये ज़रूरी तो नहीं


उसके घर का नज़ारा जो इतना खूबसूरत है

वो बेदर्द भी हो, ये ज़रूरी तो नहीं


छाता लिए जो खड़ा है शख्स,

वो तूफान से बच जाए, ये ज़रूरी तो नहीं


जप रहा माला जो भगवा पहन कर

नजर उसकी साफ हो, ये ज़रूरी तो नहीं


बली हो, हवन हो, अन्नकूट प्रसाद हो

खुदा इनसे खुश हो, ये ज़रूरी तो नहीं।


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