अंधेरा लेकर आती थी वो
अंधेरा लेकर आती थी वो
अंधेरा लेकर आयी वो,
तो मैने आंखों में तारे जगमगा दिए
कांटों से चुभने लगी थी वो,
तो मैने आंखों में गुलाब खिला लिए।
बदल रही थी वो मौसम की तरह,
हम चट्टान बन सब सहते चले गए
वो तो तस्वीर थी बेवफाई की,
हम वफा का रंग भरते चले गए।
क्या तूफ़ान कहूं, क्या आंधी कहूं उसे,
एक झोंके से मेरे हालात उजड़ गए
हमने समंदर जैसा दिल बताया था उसे,
वो आहिस्ता आहिस्ता खाली करते चले गए।
नजदीकियां बढ़ रही थी गैरों से उनकी
पास खड़े होकर, हम जुदाई नापते रह गए
साफ दिख रहे थे जूठ उसके,
हम अपनी ही आंखों पर पर्दा डालते चले गए।
आखिर, थमा कर उसका हाथ, किसी और के हाथ में,
अब हाथ से हम कलम चलाने लग गए
दुख तो उसका आज भी नहीं देखा जाता,
हर शायरी में उसके लिए दुआ लिखते चले गए।
मगर, तनहा होकर अपनी दुनिया से वो,
फिर मेरी ही गली तक पहोचे
हर नज्म, हर शेर, हर ग़ज़ल में पाकर खुदको,
वो हमसे बदले की भीख मांगते रह गए।