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Anonymous Writer

Abstract

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शीत लहर

शीत लहर

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फिर आया है लोट कर वही मौसम

शीत लहर छू कर मुझे फिर कपकपा जाएगी


चांद भी भेजेगा अपनी चांदनी को चखने

तेरे नाम की चाय जब मेरे हाथ में होगी


रात को अब कोई तारा भी ना टूटेगा

ख्वाहिश को अधूरा रहने का बहाना मिल जाएगा


ठिठुरता बदन गले मिलने की आस लगाएगा

और अंदर बैठा दिल सुलगता रह जाएगा


पलकों को भी अब झुकना रास नहीं आएगा

देख लिए बहुत सपने अब और ना देखा जाएगा


तेरी बातें, तेरे वादे सब याद में बदल गए

मुलाक़ात का दौर अब तेरी तन्हाई का आएगा


टूट जाएगा नींद का रिश्ता इन आंखों से

ये वक़्त आंसुओं को अंदर ही जमा जाएगा


दोहराएगी दर्द को ये कलम रात भर

हर पन्ना दम तोड़ता चला जाएगा



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