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Anonymous Writer

Abstract

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Anonymous Writer

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कुछ पंक्तियां

कुछ पंक्तियां

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धोखे सा एहसास हो जाता है कभी

सूरज पश्चिम से निकाल आता है कभी


इंतज़ार है उस तारे के टूटने का

जिसका कतल हमारी ख्वाइश से होगा


तड़प रही है वो शायरी किताब में

ना कोई मिटा रहा ना पढ़ रहा


दृढ़ है चट्टानें इसलिए सर उठाए खड़ी है

देखो नदी को छूकर पैर बेह रही है


बनो कांटो से जो रक्षा के प्रतीक है

गुलाब तो मंदिर और कब्र दोनों पर ही चढ़ता है


दबी है मेरी खवाईश उस खबर की तरह

जिसे आजतक कोई अखबार नसीब ना हुआ


उदास हूं तो कुछ लिख रहा हूं

कल ठीक होने पर फिर पढ़ने लगूंगा।


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