तारा सा बन बैठा था
तारा सा बन बैठा था
तारा सा बन बैठा था,
उसकी हर ख्वाहिश पर टूटता था
पीकर मैं उसके सारे जूठ,
आंखों में समंदर भर लेता था
देर रात जाती थी वो दोस्तों के साथ,
कुछ पूछने से मैं खुद को रोक लेता था
ज़िक्र कर भी दू उसकी फिक्र का,
तो ताना समझ वो रूठ जाती थी
मनाने मैं भी उसको जाया करता था,
लेकिन मन वो किसी और से बेहला लेती थी
भारी मेकअप कर को बाहर जाती थी,
बिगड़ी तबीयत पर सिर्फ मैं संवारता था
बड़ी बड़ी बातें कर आती थी बाहर,
लेकिन उसके डर सिर्फ मैं ही जानता था
लड़खड़ा जाती थी वो हील्स पहन कर,
मैं थक गया हूं बोलकर उसे बैठा दिया करता था
तू जैसी है वैसी ही रह
कहकर रोज अपना लिया करता था
पसंद उसकी बार बार बदलती थी,
इस बार शिकार मानो मेरा होना था
मेरा गुलाब वो ले लेती थी,
मगर किसी और का गुलाब वो रख लिया करती थी।