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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

"खुद का डर"

"खुद का डर"

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बिना भय, डर के कुछ भी नहीं होता है।

जो सच बोलता वो सचमुच ही रोता है।।

यदि नहीं बोलते युधिष्ठिर थोड़ा भी झूठ।

फिर तो गुरु द्रोण का वध कैसे होता है।।


वो द्वापर था, आज तो कलियुग लौटा है।

सच से ज्यादा तो आज झूठ के श्रोता है।।

आज चंदन वृक्ष हर जगह से कटा होता है।

और बबूल हर जगह शान से खड़ा होता है।।


उस व्यक्ति का सबसे ज्यादा दोहन होता है।

जो भी अच्छा फल देनेवाला मोहन होता है।।

कामचोर, लडाकू से यहां सबको डर होता है।

सीधेसाधे से चींटी तक को ख़ौफ़ न होता है।।


याद रख तू चांद से कभी सवेरा न होता है।

सूर्य के जिंदा होने से अंधेरा जीवन खोता है।।

भले तुझे न चाहे दुनिया का कोई श्रोता है।।

लिख सच, उड़ाता रह झूठें चेहरों के तोता है।।


जो जैसा बोता है, उसे वैसा फल प्राप्त होता है।

डर खुद का रख, ज़माने का डर बस मुखोटा है।।

हकीकत का चेहरा तो खुद को ही पता होता है।

आदमी अपनी सोच से ही छोटा-बड़ा होता है।।


खुद की खुदी से ही पत्थरों पर झरना बहता है।

दूसरों की फूंक से क्या चराग रोशनी खोता है?

तू जुगनू है, खुद पर रख केवल इतना भरोसा है।

अमावस में जुगनू से भी पूनम उजाला होता है।।



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