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Dr Baman Chandra Dixit

Tragedy Inspirational

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Dr Baman Chandra Dixit

Tragedy Inspirational

खत मेरे नाम का

खत मेरे नाम का

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एक पुराने पिटारे से कुछ खोजते खोजते

ठहर सा गया था मैं खुद से भागते भागते।।


एक कोरा कागज़ नीला, नया सा लगता था

जैसे छोड़ गया हो कोई लिखते लिखते।।


पता लिख रखा था मैंने खुद ही खुद का

लिख ना सकी मजमून, वो सोचते सोचते।।


संदेशे आते थे जब घर से उन दिनों 

नम हो जाती थीं आँखें पढ़ते पढ़ते।।

 

हफ्तों बीत जाते थे खत के इंतज़ार में

दिन गुजर जाते थे, बार बार पढ़ते पढ़ते


दूर होते हुए भी बहुत, करीबी इतनी थी

चेहरा दिख जाता था खत खोलते खोलते।।


याद आते वो लम्हे इंतज़ार के आज

काश लौट आता वो पल भूलते भुलाते।।


आज बेसबर सा जमाना बेखबर रिश्ते

रुख बदल लेते वो साथ चलते चलते।।


इतना भी तंग कोई गलियारा ना होता 

गैर बन जाएं अपनो से टकराते टकराते


बहुत दूर भी नहीं नज़दीक रहता है वो

देर हो जाती रोज़ वक्त खोजते खोजते।।


खूब निभाया रिश्ता जिम्मेदारियों के साथ

अक्सर कह जाते हैं हम कहते कहते 


पल जो फिसल गया लौटता फिर कहाँ

उम्र बीत जाती मगर यादें ना बिसराते।।


वो मुझे देखता था या मैं, जानता नहीं,

मगर नज़र पिघल रही थी देखते देखते।।



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