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Brijlala Rohanअन्वेषी

Drama Crime

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Drama Crime

कहाँ से चले थे हम, कहाँ को आ गए!

कहाँ से चले थे हम, कहाँ को आ गए!

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कहाँ से चले थे हम ,कहाँ को हम आ गए! 

हमारी ही महत्वाकांक्षाओं के कारण आज ,

हमारे अस्तित्व पे ही संकट के बादल छा गए ।

निकले थे हम विलासितापूर्ण विकास की चाह में,

पहुँच गए हम विध्वंसकारी विनाश की राह पे 

सोचा हमने कि अपनी विवेक से हम परिस्थितिकी पे नियंत्रण पा लेंगे।

पर विधि का विरोधाभास देखिए ,

आज हम अपनी ही बनाई हुई कथित तकनीकी उपकरणों के नियंत्रण में हैं। 

कल तक मानव, मानव का गुलाम हुआ करता था !

आज मानव, महज एक मशीन के अधीन गुलामी का जीवन जी रहा है !

अपनी लिप्साओं की लिपा-पोती में हमने न जाने कितने प्राणियों के प्राण संकट में डाल दिए!

जिस समृद्धि का सपने हमने सजाया था

वो सब आज धूमिल जान पड़ता है ।

चारों ओर चीख- पुकारें, वेदना - विवशता ,मौत का मातम पसरा पड़ा है ।

आज भयावह दृश्य है चहूं ओर, और उसमें दहशत की सिसकती आवाजें गूँज रही है ।

क्या हम आनेवाली पीढ़ियों के लिए केवल उजाड़ धरती,   

जहरीली नदियाँ और विषाक्त वायु को छोड़कर विरासत में जाएंगे ???

क्या करेंगे वे इस विरान ग्रह पे जहाँ सिर्फ खून से सनी हुई धरती 

और उस पे बिखरी लाशें के ढेर दिखेंगी चारों ओर ???



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