खामोश निग़ाहें
खामोश निग़ाहें
वो "खामोश निग़ाहें अक्सर,
सवाल करती है मुझसे !
जब साथ छोड़ना ही था तो
हाथ थामा क्यों था ?
जब निभा नहीं सकते थे,
तो वादा किया क्यों था ?
जानती हो तुम कोई मज़बूरी नहीं थी मेरी..
बस अपने सपनों की उड़ान के लिए,
दिल तोड़ दिया तुम्हारा..
अब न कोई जवाब है न सवाल...
न कोई ख्वाहिश, न कोई मंजिल..
आज भी याद आती है तुम्हारी वो
फिकी सी मुस्कान और
खामोश निग़ाहों से उठते सवाल !

