कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था
कभी सोचा ना था
जिस अँगना में जिंदगी ने
रोते हुए किया था पदार्पण
उसने मेरी हँसती-मुस्कुराती किलकारियों पर
किया था समर्पण ।
अपने पलक-पावड़ों पर बिठाया था
शुचि भाव से गले लगाया था।
सहे उसने मेरे सारे नाज़-नखरे थे
मेरे नटखट शरारती अंदाज
उसे कभी नहीं अखरे थे।
कायल करती थी उसे मेरी चंचल-चपल
अदाएं दिल-जान से दी उसने मुझे सदाएं।
अरमान जिस पर मैंने हसीं ख्वाबों के सजाएं थे
उस अँगना को अपना कहने के
अरमान मेरे सारे पराए थे।
डोली उसने मेरे अरमानों की सजाई
किस्मत में लिख दी विदाई।
कभी सोचा ना था
जिस अँगना के सीने से लिपट-लिपट कर थी रोई
उसके गले में थी अपने वारिस के नेम प्लेट की पिरोई
उसके जर्रे जर्रे ने लिखी मेरी इबादत पराई।