कभी पास कभी दूर
कभी पास कभी दूर
कभी पास कभी दूर
हम दोनों कितने मजबूर
वादों, यादों का मौसम बीता
अब है तन्हाईयों का दौर
तुम मुस्कुरा कर झूठ कहो कि
मैं खुश हूँ अंजान रिश्ते से...
फिर भी पता है सनम
तुम भीड़ में भी अकेली हो
चाहे दुनिया का मेला लगा हो चारों ओर ...
एक अजनबी से झूठा रिश्ता जोड़ना फिजुल है तेरे लिये
लौट के वापस दिन आयेंगे नहीं याद रखना
बस एक इशारा कर दे हम तुम बने है
एक दुजे के लिये...