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Chandragat bharti

Romance Tragedy

4.5  

Chandragat bharti

Romance Tragedy

कभी मुमताज थी मेरी

कभी मुमताज थी मेरी

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अजनबी बन गई अब तुम 

कभी सरताज थी मेरी।


कहीं पर खो गई हो तुम 

उड़ा कर नींद रातों की 

करें क्या बात बोलो तुम

तुम्हारी झूठ बातों की

नजर ही फेर ली तुमने

कभी मुमताज थी मेरी।


बताकर बेवफा मुझको 

किया है नाम दुनिया मे

तुम्हे क्या मिला गया हमदम

किया बदनाम दुनिया मे

हुई तुम आज गैरों की 

कभी हमराज थी मेरी।


तुम्हारी याद मे रोते

तरसते गीत हैं सारे

भला कैसे इन्हे गायें

गमों मे साज बेचारे 

अधर ज्यों मौन साधे है

तुम्हीं आवाज थी मेरी।


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