हमसफ़र
हमसफ़र
बारिश की बूँदों ने ढाया था कहर,
या था वो भीगे तन -मन का असर।
चाँदनी रात में तुमने कितना सराहा था,
निखर उठे मेरे रूप को कैसे निहारा था।
प्रेम रस में सराबोर हो कर हम -तुम,
खोए रहे एक दूजे में, हुए जग से गुम!
वो मिलन हमारा कितना प्यारा था,
पल भर भी दूर होना ना गवारा था।
किया तभी तुमने फैसला एक अनोखा,
बने मेरे हमसफर नहीं दिया मुझे धोखा।

