प्रेम की नैया
प्रेम की नैया


तू है गगन विस्तार तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ।
तू है महासागर अगम, मैं एक धारा क्षुुद्र हूँ।।
तू महानद तुल्य तो मैं एक बूंद समान हूँ।
तू है मनोहर गीत तो मैं उसकी एक तान हूँ।।
तू है गगन विस्तार तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ।
तू है महासागर अगम, मैं एक धारा क्षुुद्र हूँ।।
तू महानद तुल्य तो मैं एक बूंद समान हूँ।
तू है मनोहर गीत तो मैं उसकी एक तान हूँ।।