कौन किसका ?
कौन किसका ?
दिल पर पांव
रखते है
बड़े ही उन्माद से
ज़ालिम
बताते कुछ है
सुनाते कुछ है
शांत भी है
धीर बने गम्भीर से
लेकिन बड़े बुसुक से
साहिब !
मुस्कुराते इतराते
उन्होंने हमेशा
अपनी ही सोचा
कभी समझा नहीं
मुझको
और अब
सबसे कहते हैं
अख़लाक़ अपने
मेरी निगाहें
सदा फरमाबरदारी में उनकी
खुद से सवाल करती है
बताइये साहिब !
अब कौन किसका ?
तलबगार है यहां।
