कैसे मनाएं
कैसे मनाएं
जानती हूं तुम अभी नाराज़ हो
दिल से बुरे नहीं हो
खुले दिल से कुछ तो बोलो
शायद तुम ही सही हो
तुम बोलोगे नहीं तो
बात सुलझेगी नहीं
गुफ्तगू जो होगी तो
बात उलझेगी नहीं
देखो दोराहे पर खड़े
तुम भी तो एक राही हो
कुछ पहले की ही बात है
हम हमराज़ थे एक दूजे के
इश्क का था पलड़ा बराबर
और जिंदगी में गम कम थे
यूं राह बदलकर भी
क्यों खड़े वहीं के वहीं हो
जब से तुम खफा हो
चिराग बुझे बुझे से हैं
हर खुशी अधूरी रहती है
दुनिया सूनी सी लगती है
न आजमाओ, बताओ
किसी ने कोई बात कही है
कहा था तुमने कभी
ख़फ़ा न होओगे हमसे
निभाओगे ताउम्र, चाहे
सामना क्यों न हो मौत से
बस एक बार तो देखो
मेरी आंखों में बसे बस तुम्ही हो
हर रोज़ नए नए तरीके
क्यों ढूंढ़ते हो मुझे भूलने के
कैसे तुझे समझाऊं, मनाऊं
मनाने का हुनर सीखा नहीं
लौट आओ नए सफर के लिए
मैं भी वही हूं तुम भी वही हो
खुले दिल से कुछ तो बोलो
शायद तुम ही सही हो.......

