कैसा दौर है विकास का..!
कैसा दौर है विकास का..!


विकास का ऐसा दौर देख
डर लगता है कभी कभी
कहीं हम ख़ुद किसी भवन में तब्दील ना हो जाये,..!
ये ऊँची ऊँची इमारते
ये ज़हर उगलते कल कारखाने
ये धुआँ फेकती चिमनियाँ
ये हमारी तरक्की के संसाधन हैं या..
हमारी मौत का सामान..?
ये कल कारखानों से निकलते मजदूर
अंदर तक धसे पेट
हड्डियों का ढाँचा बन चुका ये अधमरा इंसान
ये कल का भविष्य है या..?
ये कौन सा दौर है विकास का...?
ना खुली हवा में साँस ले रहे खुलकर
ना पी पाते स्वच्छ निर्म
ल जल
ना लेते शुद्ध आहार विहार
ना भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में
खुली फ़िज़ा में जी भर जिया चैन से
बस हर तरफ मची एक होड़
विकास का दौर बेतहासा सब रहे दौड़
आदमी है या है ये बना हुआ मशीन काम और दाम का
ना कीमत जान की
ना आदमी को आदमी पहचानता
बस सब हिस्सा बन रहे भीड़ का
और..
भागती हुई भीड़ किस्सा कह रही आधुनिक विकास का
जाने कैसा दौर है ये विकास का. ..?
विकास का ऐसा दौर देख
डर लगता है कभी कभी
कहीं हम ख़ुद किसी भवन में तब्दील ना हो जाये,..!