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Kanchan Prabha

Drama Romance Fantasy

4.7  

Kanchan Prabha

Drama Romance Fantasy

काँच की चाँदनी

काँच की चाँदनी

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रात उजली सी थी थोड़ी धुँधली सी थी

क्या कहूँ कि चाँदनी ये क्या कर गयी

जब आहिस्ते से आये मेरे पास वो

उनके आने की आहट बयाँ कर गई


बातें करने की ख्वाहिश कहाँ ले गई

बातों बातों में उनकी दुआ कर गई

पूछा तबीयत जो उनका तो हँस कर कहा

अपनी जिम्मेदारी खुद से अदा कर गई

क्या कहूँ कि चाँदनी ये क्या कर गई


ओस की नन्ही नन्ही बुंदे झड़ी टूट कर 

चुपके से मेरे अश्कों की दवा कर गई

बाकी बची थी चार पल की जो ख्वाहिश

उस ख्वहिशों की पूरी हवा कर गई

क्या कहूँ कि चाँदनी ये क्या कर गई


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