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V. Aaradhyaa

Romance

4.5  

V. Aaradhyaa

Romance

कामदेव सदृश ऋतुराज़ मलंग

कामदेव सदृश ऋतुराज़ मलंग

2 mins
14


आया मदमस्त इठलाता बसंत मलंग,

कामदेव सदृश भाव लिए ऋतुराज संग !


लो बीत गयी अब शरद,शीत की रातें,

ऋतु बसंत की मधुरिमा मधु भर लाई !


तत्पर फल चखने को जाग्रत हो गई,

मानो धरा गगन पर छा गई है तरुणाई !


मादक मंद मंद पवन बहती जा रही,

चित को मदहोश कर रही है पुरवाई !


पुलक - पुलक कर कह रहा है ये मन,

तन में सिरसी कोल कामुक अंगड़ाई !


वन और उपवन सब महककर उठे हैं,

खिल रही हैं घर आंगन और फुलवारी !


मधुकर गुंजन कर रहे हैं अब चहुंओर,

हॅ॑स विहॅ॑स रही है निशा संग विभावरी !


मधुरस अमृत लिए दे रही है आमंत्रण,

मानो बन रही कोई श्रंगारित सजी नागरी !


खग कुल कलरव यूँ चहककर बोल रहा,

किसलय सी मदमस्त डोल रही है गागरी !


ऋतुराज आकर यूँ खड़े हुए प्रकृति समक्ष,

मानो बसंत सुना रहा हो अभिनव सा मीता !


प्रयत्न कर रहा सुमन उपवन से सुगंध हरने,

मन आनंदित हो कर नाच रही कोई मन मीता !


फूट रहीं हैं अरुण किरण कोमल कपोलों से,

बसंत की रुत यूँ ही न जाये इस साल भी बीता !


प्रेम पनघट पर झड़ रहा बहुत सारा नील नीर,

लगे अब मधु सा हाय घट मेरा रह न जाये रीता !


ऋतुराज दे रहे प्रेम पूर्ण मधुर मान आमंत्रण,

सुरभित तन को अपने अंक बाहुपाश में भर लो !


अपरमित प्यार की यूँ बजाओ सुर मन सरगम,

तपन मिटाओ हिय की मन में आहलाद भर लो !


अनल अमावस सा आच्छादित मन को तृप्त कर,

सिन्धु - शैल से अपरिमित मन को मृदुल कर लो !


प्रणय गीत की मृदु - मधुर प्रेम मयी शुभ धुनों से,

अपनी चिर नवीन माॅ॑ग कामदेव से अद्भुत वर लो !


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