काली वो रुत
काली वो रुत
काली वो रुत है बीती,
घुंघरू है बिखरे जब पायल मेरी टूटी।
कुछ पन्ने आज भी बे नाम है,
कुछ किस्सों के यादों के बाज़ार में ऊंचे दाम है,
खरीदना चाहता है ये दिल वो पल फिर से,
लिखना है मुझे चाहत की दीवार पर फिरदौस फिर से,।।
काली वो रुत है बीती,
घुंघरू है बिखरे जब पायल मेरी टूटी।
उसकी आवाज पर मैं झूमी थी,
उसकी एक आस में कई रात तड़पी थी,
सूना पन मेरी महफिल के हर कोने में महका है,
उनका आशियाना गुलाब के इत्र से महका है,।।
काली वो रुत है बीती,
घुंघरू है बिखरे जब पायल मेरी टूटी।
जिंदगी कभी कोरी,
कभी शोर से भरी,
यादें ज़रा सी सुलझी,
दूसरे पल लगे बेहद उलझी,।।
काली वो रुत है बीती,
घुंघरू है बिखरे जब पायल मेरी टूटी।
खुद को एक मतलबी पर लुटा बैठे,
उस व्यापारी की आंखों में मुनाफा हम न देख सके,
चला गया वो बेचैन कर इस मन को,
दे गया बस दाग सफेद लिबास को,।।