जज़्बात सुनो भी तो सही
जज़्बात सुनो भी तो सही
मौन कैसे तोड़ते तुम ही कहो तो सही,
संकोच की दीवार जो बीच ही में रही।
देखते थे कनखियों से हर बार तुम्हें,
कह न सके मन की बात मन ही में रही।
तुम हसीं हो, जवान हो, बेमिसाल हो,
दिल की बात तुमसे अब तक ही ना कही।
क्या क्या दिल में आता, क्या ये सहता है,
पास बैठो दिल के जज़्बात सुनो भी तो सही।
आज जो कहा तुमने, तो कहता हूँ मैं भी,
मीत, प्रीत की ये डोर अब बाँध भी लो यहीं।