यादें की रवानी
यादें की रवानी
ख़ुशबू है उसकी सांसों की
जैसे हो ख़ुशबू फ़ूलों की
ख्वाबों में आता नहीं वही
रात भरी उसकी यादों की
तीर चले दिल पे उल्फ़त के
ऐसी अदा उसकी आँखों की
साथ चला हूँ जिसके मैं तो
यादें आती उन राहों की
गैर हुआ है उन चेहरों से
डोर सभी टूटी रिश्तों की
न निभाता इक भी वादा वो
खाता कसमें सब वादों की
कैसे मिलनें जाऊँ उससे
छाया है काली रातों की
यार वफ़ा से इंकार किया
चोट लगी आज़म बातों की।
आज़म नैय्यर
सहारनपुर उत्तर प्रदेश