कटु सत्य
कटु सत्य
कटु सत्य जो हम अनजान बनते हैं।
अपने आप पर ही मेहरबान बनते हैं।
इस लिए कि वह हुंकार भरता था।
अपने ज़न पर अहंकार करता था।
या लोभ के पगडंडी पर चलता हुआ।
या प्रतिशोध के आग में जलता हुआ।
या परखने उस अनंता ईश्वर को ।
याकि चुनौती उस जगदीश्वर को।
या कहें अपना करनी वह जानता था।
लो हमने माना,वह उसकी महानता था।
न वह ईश इतना कठोर भी नहीं।
दसशीश सोया जिसका भोर नहीं।
फिर पुनः अवतार न उस अवतारी का।
आज हर गुण वही, मनुज तनधारी का।