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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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मशरूफ

मशरूफ

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मसरूफ़ तो बहुत रहते हैं सभी।

बस फुर्सत में काम कर लिया करते हैं कभी।


खुशियां ही खुशियां अपार हैं।

जब रखते जिंदगी आर-पार हैं।


खिड़की का दरवाजे पर पहरा है।

शंकाओं का विश्वास पर साया गहरा है।


जिंदगी को सहेजकर रखने का संकल्प लिया था कभी।

लेकिन बिखरना ही विकल्प शेष रह गया है अभी।


इस आपाधापी में जिंदगी का सुकून निकल गया।

जिसे सहेजते रहे वही तूफाँ से दोस्ती कर गया।


उसके एक निर्णय ने घर की बुनियाद हिला दी।

खोटे सिक्के की जल्द ही पहचान करा दी।


हाथों पर लकीरों को हम कितना खोजते हैं।

खामखाँ जिंदगी को इतना सोचते हैं।


आज पहली बार दर्द मुस्कुराया है।

 जरूर आंखों से अश्क बहे होंगे।


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