अनगढ़ काव्य
अनगढ़ काव्य
माला आन्टी का मलमल
गुपचुप कोई कुतर गया
अन्जाने सा दुख घर आँगन में
देखो देखो पसर गया।।
बिखरी एक उदासी मुख पे
छवि धूमिल सी करदी दी जिसने।।
मुझको बहुत अफ़सोस हुआ
माला आन्टी का मलमल
गुपचुप कोई कुतर गया
छाछ सूप का दही बनाया
दही बिलोयी हँडिया मा ।।
कुतिया का एक प्यारा पिल्ला
सुबह सुबह खोल किबड़िया पी गया ।।
वाह री किस्मत खेल अजब सा
घर चौबारे पर खूब रचा
रेल चढी न पटरी पे तो
बस का चक्का निकल गया ।।
इसने बोई उसने काटी
भैँस थी उसकी जिसकी लाठी
गलियारे में बंधे पशु को
फिर कोई कैसे खोल ले गया ।।
मारम पिट्टी नोचम नोची
अब के कर लेगी टोकम टोकी
ध्यान दिया ना सम्बंधो पर तो
मन का कोना रीत गया |।