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Nandan Rana

Abstract

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Nandan Rana

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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राही न सोच कि रात बाकी है अभी।

तू तन्हा नहीं तेरे साथ साकी है अभी।


हुआ न इंसाफ़ तेरी ख़ाफ़ में तो क्या।

ख़ुदा का अक्स बची ख़ाकी है अभी।


नहीं मानता कि मुल्क गर्दिश में मेरा।

वाशिन्दों में बची पूरी बेबाकी है अभी।


इश्क सलामत,है पुख़्ता यकीन मुझको।

तेरी नजरों ने सूरत मेरी ताकी है तभी।


दरख़्त चाहते हैं करना ग़ुफ़्तगू यकीनन।

तन्हा रहते मैंने तन्हाई आँकी है कभी।


जीवन की गाड़ी के हम-तुम दो पहिये,

एक पहिये की गाड़ी नहीं हाँकी है कभी।


जिगरे-जिस्म का खाद-पानी दिया जब।

"नवल" फसल मुहब्बत की पाकी है तभी। 


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