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Nandan Rana

Inspirational

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Nandan Rana

Inspirational

लिखो जमीं छुओ आसमां

लिखो जमीं छुओ आसमां

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फूल लिखो अंगार लिखो,

हर पल सच्चे उद्गार लिखो।

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


कब तक पोषित खबरें होंगी,

कब तक लुढ़केंगे बिन पेंदी लोटे।

सरोकार हो जन-जन का जिससे,

ऐसा कोई नया समाचार लिखो।

अच्छा हो तो प्रकाश लिखो,

बेशक बुरे को अन्धकार लिखो।

चौड़ा होता सीना खुद्दारों का,

एक नहीं सौ-सौ बार लिखो।

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो।


अहसान लिखो तुम कर्ज लिखो।

स्वार्थ दिखे तो खुदगर्ज लिखो।

कलम सत्य की साधक होती,

सत्यमेव ही हर बार लिखो।

सावन है क्यों रूखा-सूखा?

अन्नदाता क्यों सोता भूखा?

घुटता दम हिमालय का क्यों?

लूटी किसने वो बहार लिखो?

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


माँ बच्चों से डरती क्यों है?

प्रसवा बेबस मरती क्यों है?

बेटी है क्यों डरी-डरी सी?

प्रश्नों की बौछार लिखो।

धनवानों का अनुदान लिखो,

गरीबों का अपमान लिखो।

सोलह अंक के कार्ड वालों ,

खो गया कहाँ आधार लिखो?

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


आजाद देश में मैकाले क्यों,

गर्वित ज्ञान पर ताले क्यों?

रुकेगी कब दौड़ ये अन्धी,

शिक्षा क्यों बनी व्यापार लिखो?

सबके सिर छत नहीं बताओ,

सर्द शिशिर ठिठुरते शिशु दिखाओ।

वंचना इनके ही हिस्से ही क्यों?

प्यासे कण्ठों की पुकार लिखो।

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


मन दर्पण खुद को दिखलाओ,

धूल चेहरे की अब तुम हटाओ।

क्यों इंसान की कद्र नहीं है,

सिक्कों का ज्यादा क्यों भार लिखो।

समूह रुदाली का त्यागो अब,

अंध राह पर मत भागो अब।

शंकित होते पाठक के हित,

कोई कोई नया अखबार लिखो। 

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


शूल चुभे तो पीर लिखो,

राहे फूल नज़ीर लिखो।

बीच भंवर फँसी है नैया,

मिलेगी कब पतवार लिखो।

लिखना सीखो फ़िक्र पिता की ,

माँ का ममत्व दुलार लिखो।

चंचलता नटखट बहना की,

भाई का स्नेह अपार लिखो।

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


राम लिखो रहमान लिखो,

गीता संग पाक कुरान लिखो।

शिक्षा गुरु नानक की अंकित,

यीशु का प्रेमिल संसार लिखो।

अपना लहू का प्यासा क्यों है?

वृद्ध पिता आज रुआँसा क्यों है?

पुष्पों को सिंचित करने वाली,

नई संस्कृति के नये संस्कार लिखो।

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


कितने विषय तुमको दिखलाऊँ?

समस्याएँ हैं कितनी गिनवाऊँ?

सिवा इनके भी कभी ऐ साधक,

निश्चय ईश्वर का आभार लिखो।

सत्य लिखो शिव हो जायेगा,

वही सुन्दर फिर मन भायेगा।

आखिरी आस कलम ही होती,

निर्भय हो सब सत्कार लिखो। 

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो। 


ज़मीं लिखो आसमान मिलेगा,

लौह लिखो तो स्वर्ण उगेगा।

वक्री हो जाने दो कलम को,

प्रियतम को लुभाता श्रृंगार लिखो।

लाख विषय होते लिखने को,

पर राग न कभी दरबार लिखो।



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