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deepshikha divakar

Inspirational

4.3  

deepshikha divakar

Inspirational

जेल नहीं ,ये है खेल

जेल नहीं ,ये है खेल

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समझो ना इसे २१ दिन की जेल

ये तो है नियति का खेल ।

कल तक जो बाहर भागा

आज परिवार संग जागा।

पहले बाहर खाने जी ललचाया

अब घर का खाना भाया।

समय फिर से लौट के आया

दूरदर्शन भी साथ ले आया।

इस समय को व्यर्थ ना जाने दो

खुद के भीतर झांक लेने दो।

जिसके लिए कभी समय ना था

जिसके बारे में सोचा भी न था।

जिसे करने की ख्वाइश थी

जो एक आस दबी सी थी।

आज वो कह रहा है कर डालो

अपने हुनर को फिर से पालो।

बाहर खतरा नहीं , घर में सुरक्षा है

अपनों के साथ ही अपनों कि रक्षा है।

नजरिया बदलें जनाब

तभी तो कहलाएंगे नवाब।

ये जीवन का ठहराव जरूरी है

प्रकृति की मरम्मत भी अधूरी है।

कुछ दिन थमने दो इस मानव को

तभी तो रोकेंगे उस दानव को।

ये पल संजो लो जरा

जो है अपनों से भरा।

देखो उस आसमान को

देखो उन पक्षियों को।

देखो खाली सड़कों को

देखो साफ नीर को।

इस समय ने हर लिया सबकी पीर को

जीवन की आपाधापी नहीं है।

देखो जरा अंदर सबकुछ सही है

ये समय बहुत कुछ सीखा के जाएगा।

नया सवेरा जल्द ही आएगा

पर मानव तू बदल ना जाना।

समय रहते सुधर जाना

किसी निर्दोष जीव को मत खाना।

किसी की आत्मा मत दुखाना

ये सादा जीवन यू ही सजाना।

ये ही हमारा असली खजाना।


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